पुरुषोत्तम मास के व्रत नियम
पुरुषोत्तम मास को बहुत ही पावन एवं दिव्य मास माना गया है। इसे अधिमास एवं मलमास के नाम से भी जाना जाता है। मलमास की दृष्टि से षुभ कार्य टाले जाते हैं इस कारण यह माह निंदित है। परन्तु षास्त्रों के अनुसार -
पुरुषोत्तमेति मासस्य नामाप्यस्ति सहेतुकम्। तस्य स्वामी कृपासिन्धुः पुरुषोत्तम उच्यते॥
अहमेवास्य संजातः स्वामी च मधुसूदनः। एतन्नाम्ना जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति॥
मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोऽयं तु भविष्यति॥
पूजकानां च सर्वेषां दुःखदारिद्र्खण्डनः॥
भगवान पुरुषोत्तम इसको अपना नाम देकर इस माह के स्वामी बन गए। अतः इसकी महिमा बहुत बढ़ गई है। इस पुरुषोत्तम माह में साधना करने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है। यह माह सभी मासों का अधिपति है। यह जगपूज्य एवं जगद्वन्द्य है। इसमें पूजा करने पर लोगों के दुख एवं पाप का नाष होता है। पुराणों के अनुसार -
येनाहमर्चितो भक्त्या मासेऽस्मिन् पुरुषोत्तमे।
धनपुत्रसुखं लब्ध्वा पश्चाद् गोलोकवासभाक्॥
अर्थाम इस माह में पुरुषोत्तम भगवान की लगन एवं विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं एवं साधक इस लोक में सब प्रकार के सुखों का भोग पर मृत्यु के बाद वैकंुठ लोक जाता है। अतः सभी घरों, मंदिरों, तीर्थों एवं पवित्र स्थलों पर इस माह में भगवान की विषेष रुप से महापूजा आयोजित की जाती है। साथ ही धर्म की रक्षा के लिए व्रत नियमों का आचरण करते हुए दान-पुण्य एवं पूजन, कथा कीर्तन और जागरण का आयोजन किया जाना चाहिए। इससे गौ वंष, ब्राहम्ण, साधु-संत, धर्म एवं विष्व का कल्याण होता है। क्योंकि पुराणों में कहा गया है कि -
मंगलं मंगलार्चनं सर्वमंगलमंगलम्।
परमानन्दराज्यं च सत्यमक्षरमव्ययम्॥
जो मंगलरुप हैं, जिनका पूजन मंगलमय है, जो सभी मंगलों का मंगल करने वाले हैं तथा जो परमानंद के राजा हैं, ऐसे सत्य, अक्षर एवं अव्यय पुरुषोत्तम भगवान वासुदेव का ध्यान करना चाहिए।
‘‘ ओम नमो भगवते वासुदेवाय ’’ मंत्र का नियमित रुप से जाप करना चाहिए। इस माह में श्री विष्णु सहस्रनाम, पुरुष सूक्त, श्री सूक्त, हरिवंष पुराण एवं एकादषी माहात्म्य कथाओं के श्रवण से भी सभी मनोरथ पूरे होते हैं। घट स्थापना करके अखंद दीप रखना चाहिए। श्री षालिग्राम भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा करनी चाहिए या किसी योग्य ब्राहम्ण द्वारा करवानी चाहिए। श्रीमद्भागवत की कथा का पाठ अपने घर में करना अथवा कराना षुभ फलदायी सिद्ध होगा। पुरुषोत्तम मास में यथासंभव सवा लाख तुलसीदल पर चंदन से राम या कृष्ण का नाम लिखकर भगवान षालिग्राम को चढ़ा सकते हैं।
पुरुषोत्तम मास में पुरुषोत्तम माहात्मय की कथा सुननी चाहिए। नित्य प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि नित्य कार्य से निवृत्त होकर- गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्। गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्॥ मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा करते समय एवं कथा सुनते समय भगवती राधा जी सहित मुरलीधर पुरुषोत्तम भगवान का ध्यान करते रहना चाहिए।
पुरुषोत्तम व्रत करने वाले को क्या भोजन करना चाहिए और क्या नहीं, क्या वज्र्य है और क्या अवज्र्य इसके संबंध में श्रीवाल्मीकी ऋषि कहते हैं -
पुरुषोत्तम मास में एक समय ही भोजन करना चाहिए। भोजन में गेहूॅं, चावल, सफेद धान, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, चैलाई, मेथी, मटर, केला, आॅंवला, ककड़ी, दही, दूध, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत, सामक, मेथी आदि का सेवन करना चाहिए। केवल जौ पर रहना अधिक हितकर माना गया है। गुड़ नहीं खाना चाहिए परन्तु गन्ना एवं गन्ने के रस का सेवन कर सकते हैं।
मांस, षहद, उड़द, राई, मसूर की दाल, बकरी, भैंस एवं भेड़ का दूध ये सब त्याग करने चाहिए। काषीफल, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर, बैगन, नालिका आदि का सेवा वर्जित है। तिलका तेल, बासी खाना एवं दूषित अन्न का भी त्याग करें। अभक्ष्य एवं नषे की चीजों से दूरी बनाए रखें। फलाहार पर रहें तथा संभव हो तो कृच्छ-चांद्रायण व्रत करें।
इस माह में ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा पृथ्वी पर षयन करें। भोजन थाली में ना करें अपितु पलाष के बने पत्तल पर भोजन करें। राजस्वला स्त्री एवं धर्मभ्रष्ट लोगों से दूर रहें। पराई स्त्री का भूलकर भी स्पर्ष ना करें। इस माह में वैष्णव की सेवा करनी चाहिए तथा वैष्णवों को भोजन करना पुण्यप्रद होता है।
इस माह में व्रत रखने वालों को षिव एवं अन्य देवताओं, ब्राहम्ण, वेद, गुरु, गाय, स्त्री, धर्म, साधु-संन्यासीयों की निंदा भूलकर भी नहीं करनी एवं सुननी चाहिए।
तांबे के पात्र में दूध, चमड़े के पात्र में पानी, स्वयं के लिए पकाया गया खाना, दिन में निद्रा आदि आदतों के अनुसरण करने वालों को इन सभी आदतों का त्याग करना चाहिए। यदि संभव हो तो माह के अंत में उद्यापन के लिए मंडप की व्यवस्था कर योग्य पंड़ितों द्वारा भगवान की विधिपूर्वक पूजा करवाकर, ब्राहम्णों द्वारा चतुव्र्यूह का जप कराना चाहिए तथा अंत में हवन कर नारियल का होम करना चाहिए।
इस माह में गायों को हरा चारा खिलाना तथा ब्राहम्णों को भोजन कराना लाभदायक माना गया है। वैष्णवों को अपनी क्षमतानुसार सोना, चांदी, गाय, घी, अन्न, वस्त्र, पात्र, जूता, छाता, गीता-भागवत, पुस्तकों का दान कर सकते हैं। कांसे के बर्तन में तीस पूए रखकर संपूट करके ब्राहम्ण-वैष्णव को दान करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।
पुरुषोत्तम मास में भक्तिपूर्वक आध्यात्म विद्या का श्रवण करने से सभी पाप नष्ट होते हैं। पितृगण मोक्ष को प्राप्त होते हैं तथा दिन प्रतिदिन अष्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस विद्या का निष्काम भाव से श्रवण किया जाए तो व्यक्ति पापमुक्त हो जाता है।
ततश्चाध्यात्मविद्यायाः कुर्वीत श्रवणं सुधीः। सर्वथा वित्तहीनोऽपि मुहूर्तं स्वस्थमानसः॥
आजीविका ना हो तो भी बुद्धिमान मनुष्य को दो घड़ी षांत मन से गुरु से आध्यात्म विद्याा का श्रवण करना और पुरुषोत्तम तत्व को समझना चाहिए क्योंकि गीता में कहा गया है कि -
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्येत्युदाहृतः। यो लोकत्रययाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः॥
क्षर एवं अक्षर इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेष करके अपरा-परा प्रकृति और पुरुष सब का धारण-पोषण करता है। वह अविनाषी परमेष्वर एवं परमात्मा है।
गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्। प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्॥
वही पुरुषोत्तम सब की एकमात्र गतिमुक्ति स्थान है। जो सब के साक्षी, आश्रय, षरण्य तथा सुखमय है। वह भगवान सब की उत्पत्ति, लय, आधार, और निधानस्वरुप है। सब चराचर के बीज, अविनाषी, माता पिता और पितामह है तथा वही पुरुषोत्तम कहलाते हैं।
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः। परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः॥
वास्तव में वही पुरुषोत्तम देह में स्थित हुए भी परे हैं। साक्षी, उपद्रष्टा, अनुमन्ता, भर्ता एवं भोक्ता है। ब्राहम्णों के भी स्वामी महान ईष्वर हैं, वही सतचित आनंदघन, विषुद्ध परमात्मा, पुरुषोत्तम भगवान कहलाते हैं।
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः। अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः॥
क्योंकि मैं नाषवान जड़वर्ग क्षेत्र प्रकृति से सर्वथा अतीत हूॅं तथा माया में स्थित अविनाषी जीवात्मा से भी उत्तम हॅं इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हॅूॅं।
इस माह में पुरुषोत्तम को जानने की श्रद्धा रखते हुए तो व्रत रखते हैं वही सच्चे भाव से भजन-भाव, भक्ति एवं मुमुक्षुता है।
जो पुरुषोत्तम के अति गोपनीय रहस्य को जान गया, वह ज्ञानवान एवं कृतार्थ हो गया।
अतः पुरुषोत्तम तत्व को समझना और उसका भजन करना चाहिए। श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान का नाम, जप, कीर्तन, सत्संग, यज्ञ, हवन, दान-पुण्य, दीन-सेवा, तीर्थयात्रा, आर्त-सेवा, गो-रक्षा, कथा-श्रवण, पाठ-पूजा आदि नियमों का आचरण-पालन करना लाभदायक है।
इस अवधि में विवाह, मुंडन, गृहारंभ, नवीन गृहप्रवेश यज्ञोपवीत, नवीन आभूषण बनवाना, नया वाहन खरीदना आदि वर्जित हैं।
1 Year ago