अधिक मास विशेष क्यों ?
भारत की सनातन परम्परा प्राचीन है। हमारा ज्योतिष-शास्त्र विज्ञान सम्मत है। सूर्यमास तथा चन्द्रमास के अनुसार पृथ्वी के घूर्णन की गति में प्रति वर्ष ग्यारह दिन का अन्तर होता है। तीन वर्ष में यह अन्तर लगभग एक मास का हो जाता है। सनातन धर्म में खगोल वैज्ञानिकों, गणितज्ञों तथा ज्योतिषियों ने प्रत्येक तीन वर्ष में एक माह बढ़ाकर अधिक मास की ज्योतिषीय परम्परा का प्रणयन किया है। चैत्र माह से लेकर फाल्गुन माह तक कोई भी एक माह प्रत्येक तीन वर्ष में अधिक मास के रूप में ज्योतिष शास्त्र के आधार से निर्धारित है। प्रत्येक माह किसी न किसी देवता को समर्पित है और उसी देवता के पूजन का विशेष महत्व है। अधिक मास के स्वामी स्वयं भगवान विष्णु है। इसीलिये अधिक मास पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जाना जाता है।